Purushottam Narayan
Updated: Thu, 1 Jun 2017 05:51 pm
Biography
I am kind of motivational and social writer.
Samples
स्त्रियाँ अतीत से आज तक स्त्रियों के हैं रूप अनेक, देख पुरूषों, देख, देख ! सीता बन कर त्रेता युग में, तुमने अपना धर्म निभाया, राधा बन कर द्वापर युग में, कृष्ण का है साथ पाया, दुर्गा, पार्वती भी रूप तुम्हारे, भक्तजनों के प्राण उतारे। माँ बनकर कर्तव्य निभाया, पत्नी बनकर कर्म सिखाया, बेटी बन सब राह निखारी, जयकार हो स्त्रियाँ तुम्हारी। ना सिर्फ घर बार का बोझ उठाया, शत्रुओं को भी मजा चखाया, देख रणभूमि में तेरी कौशल, दुश्मनों में मच गई हलचल। देख पराक्रम उनकी शक्ति का, उङ गए कितनो के होश, चाहा मनोबल तोड़ना उनका कम कर देना उनका जोश। शुरू हुई कई कुरीतियाँ, सती, जौहर थे उनमें एक, परदा, बाल विवाह बन गई पहेलियाँ, तोङ गए कई इरादे नेक। धीरे-धीरे वक्त है गुजरा, पर अभी तक सोच नहीं, विकसित हो रही है पूरी धरा, पर इंसान की रक्त नहीं। यह संसार बिना स्त्रियों के, सोच नहीं कोई सकता है, फिर क्यों नहीं देते इज्जत उनको, क्या सोच कोई यह सकता है??? क्या सोच कोई यह सकता है??? पुरूषोत्तम नारायण ©puru12101699
All poems are copyright of the originating author. Permission must be obtained before using or performing others' poems.
Do you want to be featured here? Submit your profile.