कमबख़्त दिल!
ये दिल कुछ ख़फ़ा सा बैठा है,
शायद तुझसे या खुदी से रूठा है।
उसने अपनी चाहत तो तेरे लिए सजाई थी,
और शायद अभी भी तुझे चाहता है।
पर न जाने क्यों ये कमबख़्त दिल जताने से इतराता है।
तुझे बहुत कुछ बताने की है तो मर्ज़ी,
पर क्या करूँ, तेरी उन आँखों में मेरे लिए वो इश्क़ आखिर में है तो फ़र्ज़ी।
आज़ादी मनाई थी जिस दिन ये दिल तुझ पर आया,
और, तेरा वो इशारा कुछ अलग सा भाया।
तुझे दूर से देख,
मेरा दिल ख़ुश सा हो जाता है,
और धीरे-धीरे खुद को खो जाता है।
मेरे कुछ आँसुओं में कुछ हँसी भी मिल जाती है,
क्योंकि जब तू साथ हो, तो इस दिल में कुछ जान सी भर आती है।
तेरी वो नैन मुझे जैसे चुभते हैं,
पर कुछ कह नहीं सकती तुझसे।
और कहूँ भी तो क्या कहूँ?
तेरे दिल के सुर मेरे ही तो सामने
किसी और के गुण गाते हैं।
मेरे आँसुओं में कुछ हँसी भी मिल जाती है,
क्योंकि जब तू साथ हो,
तो इस दिल में कुछ जान सी भर आती है।